कितना अच्छा होता है – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना । हिन्दी कविता

कितना अच्छा होता है । सर्वेश्वरदयाल सक्सेना कितना अच्छा होता है  एक-दूसरे को बिना जाने  पास-पास होना  और उस संगीत को सुनना  जो धमनियों में बजता है,  उन रंगों में नहा जाना  जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं।  शब्दों की खोज शुरू होते ही  हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं  और उनके पक़ड़ में आते ही  … Read more

पिछड़ा आदमी – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना | हिन्दी कविता

पिछड़ा आदमी | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ‘खूँटियों पर टँगे लोग’ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना द्वारा लिखी एक काव्य-संग्रह जिनमें सम्मिलित ज्यादातर कविताएं सन् (1976-1981) के मध्य लिखी गयी हैं उनमें से ही एक कविता है ‘पिछड़ा आदमी’. इसमें कवि तत्कालीन समय की राजनीतिक व्यवस्था पर‌ करारा चोट करते हुए कहा हैं कि इस देश की भ्रष्ट शासन प्रणाली में पिछड़ा … Read more

देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना | हिन्दी कविता

देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रहीं हों तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर … Read more

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना – अँधेरे का मुसाफ़िर हिन्दी कविता

‘अँधेरे का मुसाफ़िर’ | सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ‘अँधेरे का मुसाफ़िर’ यह सिमटती साँझ, यह वीरान जंगल का सिरा, यह बिखरती रात, यह चारों तरफ सहमी धरा, उस पहाड़ी पर पहुँचकर रोशनी पथरा गयी, आख़िरी आवाज़ पंखों की किसी की आ गयी, रुक गयी अब तो अचानक लहर की अँगड़ाइयाँ, ताल के खामोश जल पर सो गई … Read more

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना – कोई मेरे साथ चले हिन्दी कविता

कोई मेरे साथ चले – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना कोई मेरे साथ चले मैंने कब कहा कोई मेरे साथ चले चाहा जरुर! अक्सर दरख्तों के लिये जूते सिलवा लाया और उनके पास खड़ा रहा वे अपनी हरियाली अपने फूल फूल पर इतराते अपनी चिड़ियों में उलझे रहे मैं आगे बढ़ गया अपने पैरों को उनकी तरह जड़ों … Read more

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना – तुम्हारे साथ रहकर हिन्दी कविता

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘तुम्हारे साथ रहकर’ ‘तुम्हारे साथ रहकर’ तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएँ पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमटकर एक आँगन-सी बन गयी है जो खचाखच भरा है, कहीं भी एकान्त नहीं न बाहर, न भीतर। हर चीज़ का आकार घट … Read more