लयभंग | केदारनाथ सिंह
‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ‘ नामक कविता-संग्रह में यह कविता ‘लयभंग‘ भी संकलित हैं।
लयभंग
जब सुबह-सुबह सूरज
जलाता है अपना स्टोव
और आदमी अपनी बीड़ी
तो कितना अजब है कि दोनों को
यह पता नहीं होता
कि असल में यह एक बेचैन-सी कोशिश है
उस संवाद को फिर से शुरू करने की
जो एक शाम चलते-चलते
सदियों पहले कहीं बीच रस्ते में
टूट गया था।
– केदारनाथ सिंह
Jab subah-subah suraj
Jalaata hai apna stov
Aur aadmi apni bidi
To kitna ajab hai ki donon ko
Yah pata nahin hota
Ki asal mein yah ek bechain-si koshish hai
Us sanwad ko phir se shuru karne ki
Jo ek shaam chalte-chalte
Sadiyon pahle kahin bich raste mein
Toot gaya tha.
– Kedarnath Singh