Aey Mard Tere Hain Kitne Roop – Rahil Khan
Aey Mard Tere Hain Kitne Roop
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
ऐ मर्द तेरे हैं कितने रूप
सौ रंग तेरे सौ ढंग तेरे
सौ तरह के तेरे ख़्याल है
खुद की नजर ना टिकती एक पे
और करता मुझसे सवाल है
मेरी नज़र सदा झुकी रहे
और तू चाहे करे नैन मटक्के खुब
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
दिखता है तू भोला भाला
रहता है तू साधा साधा
झांक के देखे कोई तुझमें
हैवान है तू आधा आधा
सुबह गाली देता है फिर दिन में ताने देता है
हर शाम मुझसे झगड़ता है
रात में तुझको याद आती है
प्यार वाली बातें भी खूब
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
है सरगम तू और साज भी तू
कहता मुझसे बेराग है तू
पर बेखबर है तू अपनी ही खबर से
हूं नागिन मैं, तो नाग है तू
और जुबां पे तेरी झुठ है रहता
दिल में तेरे फरेब है
और जेहन में जहर भर चुका है खूब
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
जुल्म का तेरे क्या जिक्र करूं मैं
रूह मेरी कांप जाती है
और जुबान लड़खड़ाती है
कहीं सिगरेट के दाग है मुझ पर
कहीं बेल्ट के हरे निशान
जिंदा तो हूं पर मुझ में नहीं है जान
देख के मेरी हालत ये आईना भी रोया है खूब
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
जितनी फितरत तू करता है
गिरगिट भी तुझ से डरता है
तू तेज उससे भी रंग बदलता है
और कभी बनाए तेरी पसंद के खाने
पर तूने किए रोज नए बहाने
इंतजार भी तेरा किया है मैंने
और भूखी भी सोई हूं मैं
और तू खाता रहा होटल पर लजीज खाने भी खूब
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
जीती मैं तो जीत तुम्हारी है
हारी मैं तो हार मेरी है
तुझ से वफा की उम्मीद
अफसोस की ये भूल मेरी है
और रंगरलिया तू रोज नई मनाए
कहे के बीवी पवित्र मिलेगी
जा पहले तो खुद राम तो बन जा
फिर तुझको सीता भी मिलेगी
और वक्त तुझपे भी आएगा
कोई कहर तुझ पे भी ढाएगा
तू रोएगा पर आंसू एक ना आयेगा
एहसास तुझे गलती का होगा
और तू पछतायेगा खुब
ऐ मर्द तेरे है कितने रूप
कभी बेवफ़ाई लिखी मेरी
कभी जिस्म की नुमाइश हजार लिखी
ना लिखी मेरे जेहन की खूबसूरतीयाँ
तो इन लिखने वालों ने ना लिखी।
– राहिल खान
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