Sehar Me Dhoondh Raha Hoon Ki Sahara De De | Rahat Indori
शब्द | अर्थ |
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सगँज़नी – | बिस्तर। |
कासा – | कटोरा। |
हातिम – | अत्यंत दानी और परोपकारी व्यक्ति। |
Sehar Me Dhoondh Raha Hoon Ki Sahara De De
शहर में ढूंढ रहा हूँ कि सहारा दे दे
कोई हातिम जो मेरे हाथ में कासा दे दे
पेड़ सब नंगें फ़क़ीरों की तरह सहमे हैं
किस से उम्मीद ये की जाये कि साया दे दे
वक़्त की सगँज़नी नोच गई सारे नक़श
अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे
दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये
आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोखा दे दे
मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा
मेरी तन्हाई यहाँ कुछ दिनों पेहरा दे दे
डूब जाना ही मुक़द्दर है तो बेहतर वरना
तूने पतवार जो छीनी है तो तिनका दे दे
जिस ने क़तरों का भी मोहताज किया मुझ को
वो अगर जोश में आ जाये तो दरिया दे दे
तुम को “राहत” की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा
वो भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे
– राहत इंदौरी
Shehar me dhoondh raha hoon ki sahara de de
Koi haatim jo mere haath me kasa de de
Ped sab nange faqiron ki tarah sahme hain
Kis se ummeed ye ki jaaye ki saya de de
Waqt ki sangjani noch gayi saare naksh
Ab wo aaina kahan jo mera chehara de de
Dushmano ki bhi koi baat to sach ho jaaye
Aa mere dost kisi din mujhe dhoka de de
Main bahut jald hi ghar laut ke aa jaaunga
Meri tanhaai yahan kuch dino pehara de de
Doob jaana hi muqddar hai to behatar warna
Toone patwaar jo chhini hai to tinka de de
Jis ne katron ko bhi mohtaaz kiya mujhko
Wo josh me agar aa jaaye to dariya de de
Tum ko Rahat ki tabiyat ka nahi andaaza
Wo bhikari hai magar maango to duniya de de
– Rahat Indori