Ishq Kuch Kam Raha Poem Lyrics | Chanchal Garg | The Social House Poetry

Ishq Kuch Kam Raha | Chanchal Garg

'Ishq Kuch Kam Raha' Poem has written and performed by Chanchal Garg herself on The Social House's Plateform.

 

Ishq Kuch Kam Raha 

एक लफ्ज़ शायद कम रहा
हमें तो नहीं, उसे ये वहम रहा
उसके एक अक्श पर अपनी हर मुस्कान लुटाते रहे 
फिर भी उसकी निगाह में 
उसका इक्तयार हम पर कुछ कम रहा 
तसल्ली दी उसे हर घबराहट में कुछ कसके समेट के 
फिर भी उसके दिल पर हमारी मोहब्बत का असर कम रहा 
एक लफ्ज़ शायद कम रहा
हमें तो नहीं, उसे ये वहम रहा
उसकी बाहों में रहते थे उसे पलकों पर रखते थे 
पर उसके जहन में बसने का हुनर हममें कम रहा
एहतैयाद बहुत की हमने की पैमाना छलके ना
पर उसकी मदहोश हथेलियों पर 
हमारी छुअन का एहसास कुछ कम रहा 
हमारी ख्वाहिशो के आसमान में 
उड़ता एक बेबाक परिंदे सा था वो 
पर उसके अरमानों के अंजुमन में 
हमारे ख्यालों का वजन कुछ कम रहा 
इतराया बहुत बचपन उसका 
उसकी जवानी को हम पर एतबार कुछ कम रहा
एक लफ्ज़ शायद कम रहा
हमें तो नहीं, उसे ये वहम रहा 
लिखा तो अभी बस एक फ़साना था
अफ़साने लिखने बाकी थे 
पर स्याही की कशिश का 
हमारे पुराने कागज़ों पर जलवा कुछ कम रहा 
वो ढ़ाई अक्षर प्रेम के क्यों हमने उसे कहे नहीं 
इतना सब करके भी वो कुछ समझा नहीं 
उसकी शिकायत का हम पर यही सितम रहा 
एक लफ्ज़ शायद कम रहा
हमें तो नहीं, उसे ये वहम रहा

                                                    – चंचल गर्ग