झरबेर | केदारनाथ सिंह
कविता-संग्रह ‘यहां से देखो‘ सन् 1983 में प्रकाशित हुई जिसमें यह कविता ‘झरबेर‘ भी सम्मिलित हैं। इस कविता में केदार जी ट्रेन की खिड़की से झरबेर के पेड़ों को देख कर अपनी कुछ स्मृतियो को ताजा करते हैं।
झरबेर
प्रचंड धूप में
इतने दिनों बाद
(कितने दिनों बाद ?)
मैंने ट्रेन की खिड़की से देखे
कँटीली झाड़ियों पर
पीले-पीले फल
‘झरबेर हैं’ – मैंने अपनी स्मृति को कुरेदा
और कहीं गहरे
एक बहुत पुराने काँटे ने
फिर मुझे छेदा
– केदारनाथ सिंह
Prachand dhup mein
Itne dinon baad
(Kitne dinon baad ?)
Maine train ki khidki se dekhe
Katili jhaadiyon par
Pile-pile phal
‘Jharber hain’ – maine apni smriti ko kureda
Aur kahin gahre
Ek bahut purane kaante ne
Phir mujhe chheda
– Kedarnath Singh