काली मिट्टी | केदारनाथ सिंह
गांव के लोग मिट्टी के घरो में और मिट्टी का उपयोग ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में होता है और केदार जी जिस मिट्टी का जिक्र इस कविता में कर रहे वो मिट्टी काले रंग की है जिसके कारण वहां सब काला दिखाई देता है
चाहे वो भ्रष्टाचार या काला धन सब काले और धुंधले दिखाई देते हैं। यह कविता भ्रष्ट प्रशासन में करारा चोट करती है। ‘अकाल में सारस’ नामक कविता-संग्रह में केदार जी द्वारा लिखीत यह कविता ‘काली मिट्टी‘ सम्मिलित हैं।
काली मिट्टी
काली मिट्टी काले घर
दिनभर बैठे-ठाले घर
काली नदिया काला धन
सूख रहे हैं सारे बन
काला सूरज काले हाथ
झुके हुए हैं सारे माथ
काली बहसें काला न्याय
खाली मेज पी रही चाय
काले अक्षर काली रात
कौन करे अब किससे बात
काली जनता काला क्रोध
काला-काला है युगबोध
– केदारनाथ सिंह
Kaali mitti kaale ghar
Dinbhar baithe-thaale ghar
Kaali nadiya kaala dhan
Sukh rahe hain saare ban
Kaala suraj kaale haath
Jhuke hue hain saare maath
Kaali bahsen kaala nyaye
Khaali mej pi rahi chaye
Kaale akshar kaali raat
Kaun kare ab kisse baat
Kaali janta kaala krodh
Kaala-kaala hai yugbodh
– Kedarnath Singh