कुछ और टुकड़े | केदारनाथ सिंह
‘कुछ और टुकड़े’ कविता केदार जी की कविता-संग्रह ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ’ में संकलित एक हिन्दी कविता है।
कुछ और टुकड़े
1)
अकेली चुप्पी
भयानक चीज है
जैसे हवा में गैंडे का
अकेला सींग
पर यदि दो लोग चुप हों
पास-पास बैठे हुए
तो उतनी देर
भाषा के गर्भ में
चुपचाप बनती रहती है
एक और भाषा।
2)
बरसों तक साथ-साथ
रहने के बाद
जब वे विधिवत अलग हुए
तो सारे फैसले में
यह छोटी-सी बात कहीं नहीं थी
कि जहाँ वे लौटकर जाना चाहते हैं
वह अपना अकेलापन
वे परस्पर गँवा चुके हैं
बरसों पहले।
3)
जन्म-मृत्यु सूचना के
उस नए दफ्तर में
पहले तय हुआ
जन्म का रजिस्टर अलग हो
मृत्यु का अलग
फिर पाया गया
यह अलगाव बिल्कुल बेमानी है।
– केदारनाथ सिंह
1)
Akeli chuppi
Bhayanak chiz hai
Jaise hawa mein gainde ka
Akela sing
Par yadi do log chup ho
Paas-paas baithe hue
To utni der
Bhasha ke garbh mein
Chupchaap banti rahti hai
Ek aur bhasha.
2)
Barson tak saath-saath
Rahne ke baad
Jab ve vidhivat alag hue
To saare phaisle mein
Yah chhoti-si baat kahin nahin thi
Ki jahan ve lautkar jaana chaahte hain
Wah apna akelapan
Ve paraspar gawa chuke hain
Barson pahle.
3)
Janm-mrityu suchna ke
Us naye daphtar mein
Pahle tay hua
Janam ka register alag ho
Mrityu ka alag
Phir paaya gaya
Yah algav bilkul bemani hai.
– Kedarnath Singh