Main Tumhe Bhula Chuki Hoon, Lekin By Ravina Singh | The Social House Poetry

Main Tumhe Bhula Chuki Hoon, Lekin | Ravina Singh


'Main Tumhe Bhula Chuki Hoon, Lekin' poem written and performed by ravina singh on The Social House's Plateform.

Main Tumhe Bhula Chuki Hoon, Lekin

हां मैं तुम्हें भुला चुकी हुं लेकिन
वो हजारों व्हाट्सप मैसेजस
जो हमारे दिन रात का हिसाब थे
वो सारे क्यूट वॉइस नोट्स 
जो हर सुबह के साथ थे
वो मेरी दी हुई तुम्हारी फेवरेट शर्ट 
जो तुम लौटा गए थे 
वो तुम्हारा दिया हुआ हर तौफा
जिसपे मेरे दोस्तों के नाम थे 
हाँ वो सब संभाल के रखा हैं मैने 
कि कहीं तुम लौट आओ तो तुम्हे दिखा सकूँ बता सकूँ 
कि तुमने क्या खो दिया 
हाँ मैं तुम्हें बुला चुकी है लेकिन… 
वो हर बार तुम्हारा सेम प्लेलिस्ट पर जाना 
कलाइयों पर मैचिंग टैटू बनवाना 
पिज्जा का last slice छोड़ जाना 
कुछ न कुछ हमेशा भूल जाना 
और मेरा तुम्हें याद दिलाना 
हाँ वो सब याद रखा है मैंने 
कि कहीं तुम लौट आओ तो तुम्हें बता सकूँ 
कि तुमने क्या खो दिया 
One night lying under the star little sky. Out of my misery a thought came by, Packed everything of yours in a box. Named it past and give it a toss, For some time It floated over the line. Gazing back at me, But I was fine… 
उस बॉक्स में सब था 
First meeting से लेके last visit तक 
First huge से लेके last fight तक 
First kiss से लेके last shout तक
First smile से लेके last cry तक
First patch up से लेके last try तक 
So I kept that box 
कि कहीं तुम लौट आओ तो तुम्हे दिखा सकूँ बता सकूँ 
कि तुमने क्यो सब खो दिया 
हाँ मैं तुम्हें भुला चुकी हूं लेकिन…. 
                                          – रवीना सिंह