यह पृथ्वी रहेगी | केदारनाथ सिंह
केदारनाथ सिंह जी कविताओं को पढ़ते हुए ध्यान आता है कि इनकी कविताओं में बड़ी-बड़ी बातों को कितने सहज शब्दों में लिखा गया है, अन्य कवियों की तरह नही की जो कठिनतम बिंबों और भारी-भरकम शब्दों से कविता को ऐसा उलझाते हैं कि उसे पढ़ कर एक विरोधी भी चक्कर खा जाए। ऐसी ही एक कविता ‘यह पृथ्वी रहेगी‘ जिसमें केदारनाथ जी ने बहुत सहज-सरल शब्दों में पृथ्वी के रहने की बात कही है।
यह पृथ्वी रहेगी
मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में
यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में
रहते हैं दीमक
जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अंदर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी जबान
और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी
और एक सुबह मैं उठूँगा
मैं उठूँगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूँगा
मैं उठूँगा और चल दूँगा उससे मिलने
जिससे वादा है
कि मिलूँगा।
– केदारनाथ सिंह
Mujhe vishwaas hai
Yah prithvi rahegi
Yadi aur kahin nahin to meri haddiyon mein
Yah rahegi jaise ped ke tane mein Rahte hain deemak
Jaise daane mein rah leta hai ghun
Yah rahegi pralay ke baad bhi mere andar
Yadi aur kahin nahin to meri jabaan
Aur meri nashvarta mein
Yah rahegi
Aur ek subah main uthunga
Main uthunga prithvi-samet
Jal aur kachchhap-samet main uthunga
Main uthunga aur chal dunga usse milne
Jisse vaada hai
Ki milunga.
– Kedarnath Singh