Mohabbat Us Se Kuch Zyada rahi hogi
यूं ही नहीं हारा मैं
कुछ तो वजह रही होगी
उसके साथ से ज्यादा मुझे शायद
उसकी हंसी अज़ीज़ रही होगी
और भुलाने को भुला देता मैं भी उसे बिल्कुल उसी की तरह
पर मोहब्बत जनाब
मोहब्बत उससे कुछ ज्यादा रही होगी।
सुकून से सोती है वो रातों को
मुझे चैन नहीं एक पल
मेरे ख्वाब मेरी तरह मासूम है
उसके शैतान उसी की तरह
सोने नहीं देते रात भर
कुछ इस तरह से बर्बाद हो रहा हूं मैं,
कि कुछ बनता नहीं
उसका गुजारा हो जाता है मेरे बगैर
पर मेरा होता नहीं
कि धीमा जहर है यादें उसकी
ना मौत मयस्सर है और जिया भी जाता नहीं
वो कहती है पागल हूं मैं
मैं कहता हूं इस पागलपन की भी तो कोई वजह रही होगी
और भुलाने को भुला देता मैं भी उसे बिल्कुल उसी की तरह
पर मोहब्बत उससे कुछ ज्यादा रही होगी
तल्ख़ियां जब बड़ी गुफ्तगू में हमारी
बड़ी मोहब्बत से अलग हुए हम
मेरा प्यार करना जब उसे जिस्म की जरूरत लगने लगा
फिर इस इल्ज़ाम से अलग हुए हम
यही तो है ना, वसूलें इश्क भी
किताबों में पढ़ा था हमने
कि वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना बेहतर
फिर वही किया हमने
खुद को जलाया उसको रोशन किया हमने
कि मेरे ज़मीर को भी इश्क में खलिश अच्छी नहीं लगी होगी
और भुलाने को भुला देता मैं भी उसे बिल्कुल उसकी तरह
पर मोहब्बत जनाब, उससे कुछ ज्यादा रही होगी
हमने हर सांस पर उसका नाम लिखा है भूलाएं कैसे
अब सांस लेते हैं जीने के लिए फिर वो याद ना आए ऐसे कैसे
जान तो इस बात पर जाती है कि उसे मेरी याद नहीं आती
मेरी ऐसी कोई शाम नहीं जब मुझे उसकी याद नहीं आती
बेवफा है वो फिर भी तारीफ पर ही लिखते हैं
अब उनकी बेइज्जती करें इस बात की इजाजत हमारी मोहब्बत नहीं देती
सुना है… सुना है मेरे ज़िक्र पर वो चुप हो जाता है
मैंने चाहा था उसे कभी खुद से ज्यादा
अब उसे ये बात बताने तक में शर्म आती है
इतने पर भी, उसी की फिक्र और उसी का जिक्र अब हमारी इस बेशर्मी की भी तो कोई वजह रही होगी
और बुलाने को भुला देता मैं भी उसे बिल्कुल उसकी तरह
और मोहब्बत जनाब, उससे कुछ ज्यादा रही होगी
इल्म नहीं था कि ये मोहब्बत हमारी इबादत में बदल जाएगी
वो जो एक पागल सी लड़की है ना मेरी जिंदगी में मेरे लिए मेरा खुदा हो जाएगी
इल्म नही था वो दुनिया बनाई है हम दोनों ने मिलकर
उसके जाने के बाद की यादों के सहारे रहूंगा
और वो हंसकर किसी और की हो जाएगी
वो खुश है
मैं ये सोचकर जिंदा रहूंगा
इल्म नही था
कि जनाब बात कुछ रूहानी सी हो गई है
मेरी रूह ने चुना था उसे
मेरी रूह को उसकी आदत सी हो गई है
यूं तो उसके हर हुकुम के लिए हां होती है मेरी और जब बोलने को कहा उसने
धड़कनों ने भी इनकार किया मेरी
धड़कनों ने भी इनकार किया मेरी
पहली मर्तबा गुस्ताखी की थी
पर इस गुस्ताखी की भी तो कोई वजह रही होगी
और भुलाने को भुला देता मैं भी उसे बिल्कुल उसकी तरह
और मोहब्बत उससे कुछ ज्यादा रही होगी
मुस्कुराहट बहुत प्यारी है उसकी
कुछ यूं भी मैं उसे रुलाता नहीं
और मीठी कहना पसंद हमें है उसे
तभी तो उसके नाम से उसे बुलाता नहीं
और जानते हो
और जानते हो गुस्से में और भी हसीन हो जाती है
सारी कायनात की खूबसूरती मानो उसी में तो समा जाती है
मैं जब लिखता हूं तारीफ पर उसकी
यकीन मानिए मुझे खुद पर नाज,
मेरी कलम को आशिकी आ जाती है
इतनी मोहब्बत है मुझे फिर भी हम साथ नहीं
इस बात में भी तो अल्लाह की कोई मर्जी रही होगी
और भुलाने को भुला देता मैं भी उसे बिल्कुल उसकी तरह
पर मोहब्बत जनाब, उससे कुछ ज्यादा रही होगी
मोहब्बत कितनी है उससे बयां कर नहीं सकता जो सुकून उसके नाम के चार अक्षरों में है
मुझे उस खुदा के नाम में भी नहीं मिलता
नशे से ज्यादा चढ़ती है वो आंखों से बात करती है
उसका हर अल्फाज रूह को सुकून देता है
कुछ तो वो प्यारी है,
कुछ मुझे बहुत प्यारी लगती
है।
– उमेश राजपूत