Kalam Uthali To Aukaat Likh Doonga Poetry | Amit The Robo | Poem And Kahaniyan

This beautiful poetry 'Kalam Uthali To Aukaat Likh Doonga' has written and performed by Amit the Robo.

Kalam Uthali To Aukaat Likh Doonga

आधी लिखूंगा मगर हर एक बात लिख दूंगा
आप गालीयां मत देना मुझे पीठ पीछे 
उठा ली कलम तो आपकी औकात लिख दूंगा।
पहले तो चांद से उस चेहरे को यूं पकड़ा मैंने
कमरे में बंद कर दिया
फिर सारे सितारों को पकड़ा और निचोड़ दिया
और जो कहा करती थी शक्ल देखी है अपनी?
दिमागमाया फिर मैंने उसे भी छोड़ दिया।
अब तो मशहूर हो गया है ये रकीब 
चर्चे हर जुबान पे है
उसने उठाया अपना सर और दिवार पे फोड़ दिया।
मैंने बेजुबान को काटता बंद आंखों से वो कसाई देखा है
माफ़ किजिए जनाब़… जानवर तो बहुत देखे होंगे आपने सड़कों पर घूमते हूए,
लेकिन गंदी नजरों से शिकार करता मैंने घर पर वो भाई देखा है।
उठाकर कलम, निकाल कर सिहायी, लगा के हाथ 
उसपे एक लांछन लगा दिया मैंने
और शब्दों को पैदा करने में जरा सी देरी क्या की मेरी कलम ने,
उसको बांझन बता दिया मैंने।
आज फिर से तुम्हारी आंखों में डूब जाने को मन
करता है
मगर कहां मैं एक तैराक अच्छा 
माफ कीजिए मोहतरमा अभी मैं इश्क में नहीं आ सकता
क्योंकि अभी तो मैं खुद बच्चा हूं 
ये नदिया, ये किनारा, ये पत्थर का इशारा, 
और अगर तुम्हें लगता है कि आंसू ही मोहब्बत है तो चल आज पूरा दरिया तुम्हारा।
पहले तो जमीन पे एक पलंग की तस्वीर बनाई गई 
फिर एक भूखी आत्मा बिछा के चादर वहां सुलाई गई
शायद नहीं मगर हां, एक गरीब की बच्ची थी वो
तभी शायद मिट्टी से लिपटे एक रोटी के टुकड़े के लिए, 
क्या खूब रुलाई गई। 
शक्ल से खूबसूरत नहीं है थोड़ी सी अनपढ़ है 
मगर उसकी दर्द को भी आह होती है 
आपके पास होंगी तमाम मोटे बिस्तर भी
मगर जब मैं रोता हूं मेरे पास मेरी मां होती है
उतर गया लिबास तो मोहब्बत मोहब्बत ना रही 
जनाब, मोहब्बत तो रहा मगर वो बात ना रही।
 
माना चूल्हे पे जलती रोटियां मेरी मां की उंगलियों को जलाया करती है
मगर कंबख्त इकलौती औरत है वो जमाने में 
जो अपनी जली हुई उंगलीयो से भी बच्चों की भूख मिटाया करती है
चूल्हे पे जलने के बाद चार रोटियां कुछ यूं ख़ाक हो गई
कमबख्तों मां के बारे में याद भी तब आया 
जब मरने के बाद उसकी मिट्टी भी राख हो गई
हमने सुना है कि तुम जुबान बहुत लड़ाते
हो हमसे.. हां लेकिन जुबां से,
और यकीन माने मोहतरमा, ये जुबान ज्यादा दूर नहीं है तुम्हारे मकान से।
हवाओं में बना के खिड़की
खोल के दरवाजे के अकसर नीचे झांक लेता हूं मैं
और सुन, जितनी मोहब्बत तूने अपनी गर्म सांसों से करी थी मुझे यहां, 
उससे ज्यादा तो खड़े-खड़े हाफ लेता हूं मैं।
                                – Amit The Robo