Jahaan Tum Nahi Aati Poetry By Amandeep Singh | Love Poetry

This beautiful Poetry 'Jahaan Tum Nahi Aati' has written and presented by Amandeep Singh.

Jahaan Tum Nahi Aati

मैं मिलता हूं तुमसे अक्सर वहां 
जहां आजकल तुम नहीं आती हो 
कोई रहता है मेरे दिल के कमरे में तुमसा 
जहां आजकल तुम नहीं आती हो 
वो बातें जो हमारे बीच पुल बनाती थी 
जिन पर चलकर तुम मुझसे मिलने आती थी
शायद वो पुल वक्त की तेज लहरों से डूब गया है 
या फिर चलते चलते तुम्हारा मन ऊब गया है 
वो जो तुम्हारे लिए सारे नाम मेरे हिस्से में आते थे
आजकल उनसे तुम किसी और को बुलाती हो 
मैं मिलता हूं तुमसे अक्सर वहां 
जहां आजकल तुम नहीं आती हो 
वो जो ख्यालों की दुनिया ने बनाई थी 
जहां जाने के लिए साथ दौड़ लगाई थी
अब तुम उन रास्तों की धूल हो गई हो 
दिल ये नहीं मानता है कि तुम मुझे भूल गई हो 
वैसे तो मेरे आंसू बहुत सताते हैं। 
बिन बुलाए ही मुझसे मिलने आ जाते हैं। 
लेकिन आजकल मैं थोड़ा ज्यादा रो लेता हूं
शायद गीली सतह से पलकों के थोड़े ज्यादा बाल गिर जाएंगे 
फिर उन्हें कलाई पर सजा कर दिल से गुहार लगाकर मांग लूंगा तुम्हें
तुमसे फिर से उन रास्तों के लिए 
शायद….
शायद यह सब कुछ तुम पहले की तरह समझ पाती
सुनो! …मै इंतजार करता हूं तुम्हारा अब भी वहां 
जहां तुम आजकल नहीं आती 
न जाने कितने दरवाजों को अब भी खुला छोड़ा है तुम्हारे इंतजार में
बहुत से ऐसे रास्ते हैं जो मैंने नहीं लिए तुम्हारे एतबार में 
कितने ही सफर है जो आज तक मैंने शुरू ही नहीं किए है
बस दो टिकट लेकर तुम्हारा इंतजार करता हूं 
और ये आस लगाए रखी है
शायद…. 
शायद एक दिन मुझे तुम मिल जाओगी उस मोड़ पर
जहां सालों पहले गई थी तुम मुझे छोड़ कर।
                            – Amandeep Singh