A pni Pahchaan Mitaane Ko Kaha Jata Hai :- Legendary writer Rahat Indori, recently participated in the program, which celebrated the three-day festival of ‘Jashn-e-Rekha‘ celebrating Urdu and our overall culture and delighted everyone with his magnificent Shayari.
Apni Pahchaan Mitaane Ko Kaha Jata Hai
#1
सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए
सोचता हूं कोई अखबार निकाला जाए
पी के जो मस्त है उनसे तो कोई खौफ नहीं
पी के जो होश में है उनको संभाला जाए
आसमां ही नहीं, एक चांद भी रहता है यहां
भूलकर भी कभी पत्थर ना उछाला जाए
नए आवाम की तामीर जरूरी है
मगर पहले हम लोगों को मलबे से निकाला जाए।
#2
अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियां आज छोड़कर जाने को कहा जाता है
पत्तिया रोज़ गिरा जातीं हैं जहरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है।
#3
जिंदगी को साज, सांसों को नई धुन कह दिया
कौन है जिसने बिना सोचे हुए कुन कह दिया
उसने इतना भी नहीं सोचा कि नाबिना हुं मैं
तीर मेरे हाथ में था तो मुझको अर्जुन कह दिया
देखना तकरीर का रूख कैसे बदला जाएगा?
खून में लथपथ हुआ मौसम, तो फागुन कह दिया
उसको हर एक रोग का नुस्खा जबानी याद है
मेरे मुंह से जख्म निकला, उसने नाखुन कह दिया
घुल गए होठों पे सबके खट्टे-मीठे जायके
मैंने उसकी सांवली रंगत को जामुन कह दिया।
नाबिना = अंधा।
#4
ऐसी सर्दी है के सूरज भी दुहाई माँगे
जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई माँगे
अपने हाकिम की फ़क़ीरी पे तरस आता है,
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे
सारा दिन जेल की दिवार उठाते रहिये,
ऐसी आज़ादी की हर शख्स रिहाई मांगे।
#5
खड़े हैं मुझको खरीदार देखने के लिए
मैं घर से निकला था बाजार देखने के लिए
कतार में कई नाबिना लोग शामिल हैं
अमीर-ए-शहर का दरबार देखने के लिए
हर एक हर्फ से चिंगारियां निकलती हैं
कलेजा चाहिए अखबार देखने के लिए
हजारों बार हजारों की सम्त देखते हैं
तरस गए तुझे एक बार देखने के लिए।
– राहत इंदौरी