Pachtawa To Use Bhi Hoga
पछतावा तो होगा उसे भी जिसने ये दुनिया बनायी
हां जन्नत है उसकी पर मां मेरे हिस्से में आयी
कर लो जितनी करनी है लड़ाई वक्त निकल जाएगा
आज मुंह फुलाए खड़ा है तू कल सिर से पैर तक सिहर जाएगा
जब वो हमेशा चीक चीक करने वाली मां को खोने का ख्याल आएगा
यार सब मजाक उड़ाएंगे मेरे बालों में तेल देख के मुझे चंपू बुलाएंगे
कह के मैं भी भाग जाती थी
वो तेल की कटोरी हाथ में लिए दरवाजे तक आती थी
एक वहीं तो थी जो मार के भी लाड लड़ाती थी
दर्द मुझको होता था तड़प वो जाती थी
जब बना बना कर रखती थी
भूखे पेट इंतजार भी करती थी
तब पार्टी अच्छी लगती थी
अब सूखी दाल रोटी के लिए मैं साल भर इंतजार करती हूं
‘मां बस पेट भर गया’ एक रोटी से कुछ नहीं होता.. खा ले!! ये सिर्फ मां ही कहती थी
मेरा घर अप टू डेट रहता है अब
घरवालों की हर चीज का पता यहां अपडेट रहता है अब
पर मेरा रूमाल अलमारी से मै अब भी नहीं ढूंढ पाती
सच कहती थी वो अगर मै घर में ना रहूं ना तो तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा जिंदगी में,
आज उसकी डांट बहुत याद आती है
जितना हो सके वक्त देना अपनी मां को
हर रात उसके पेट से खेलना, जब मन करे लड़ना
फिर चिपक के मना लेना उसको
वो एक एक्सट्रा रोटी और बालों में तेल की यादें बस ये यादों का पिटारा है जो जिंदगी भर कभी हंसाएगा कभी रुलाएगा तुमको
पर हां गिरने नहीं देगा
पर कभी भी गिरने नहीं देगा…
जब मां रोती है बेटी चुप करा लेती है
मां को संभाल लेती, पर बाप की आंखें नम भर हो
तो बेटी आंसुओं की नदियां बहा देती है
पिता की अहमियत अगर पूछनी है तो उस बेटी से पूछो!!
‘पापा शहर से कब आएंगे?’ जो एक सवाल में अपना पूरा बचपन गंवा दी है।
– नेहा त्रिपाठी शर्मा