दृश्ययुग-1 | केदारनाथ सिंह
‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ‘ नामक कविता-संग्रह केदारनाथ सिंह जी द्वारा लिखी गई है जिसमें यह कविता ‘दृश्ययुग-1‘ भी संकलित हैं।
दृश्ययुग-1
मन हुआ चुप रहूँ
फिर कुछ मिनट बाद
चुप्पी खलने लगी
फिर किसी ने मेरे अंदर
जैसे गाने की जिद की
यह कोई अन्य था
जिसे मैं जानता नहीं था
पर छू सकता था
फिर यह सच कि छूना
हाथ का अपना एकाधिकार है
जीभ के प्रतिवाद से
निरस्त हो गया
फिर एक विवाद शुरू हुआ
समूचे शहर में
स्वाद और ध्वनि
और दृश्य और स्पर्श के बीच
और इस पूरी युद्ध-भूमि में
स्पर्श का भयानक अकेलापन मैंने देखा
और जब देखा न गया
तो एक कवच की तरह
उसी को पहनकर
चला गया दफ्तर।
– केदारनाथ सिंह
Mann hua chup rahun
Phir kuch minute baad
Chuppi khalne lagi
Phir kisi ne mere andar
Jaise gaane ki zid ki
Yah koi anay tha
Jise main jaanta nahin tha
Par chhu sakta tha
Phir yah sach ki chhuna
Haath ka apna ekaadhikaar hai
Jeebh ke prtivaad se
Nirast ho gaya
Phir ek vivaad shuru hua
Samuche shahar mein
Swaad aur dhvani
Aur drishy aur sparsh ke bich
Aur is puri yuddh-bhumi mein
Sparsh ka bhayaanak akelapan maine dekha
Aur jab dekha na gaya
To ek kavach ki tarah
Usi ko pahankar
Chala gaya daftar.
– Kedarnath Singh