जब वर्षा शुरू होती है | केदारनाथ सिंह
‘जब वर्षा शुरू होती है‘ कविता केदारनाथ सिंह जी द्वारा लिखी गई एक हिन्दी कविता है जिसमें जन जीवन प्रभावित होने का वर्णन किया गया है और मकानों और मिट्टी से जो धीमी गंध आती है वर्षा के दौरान इसका भी जिक्र है। केदार जी की कविताएं सहज सरल भाषा में होती है पर उनके अर्थ बड़े और दिमाग को झंझोर देने वाली होती है।
जब वर्षा शुरू होती है
जब वर्षा शुरू होती है
कबूतर उड़ना बंद कर देते हैं
गली कुछ दूर तक भागती हुई जाती है
और फिर लौट आती है
मवेशी भूल जाते हैं चरने की दिशा
और सिर्फ रक्षा करते हैं उस धीमी गुनगुनाहट की
जो पत्तियों से गिरती है
सिप् सिप् सिप् सिप्ज
जब वर्षा शुरू होती है
एक बहुत पुरानी सी खनिज गंध
सार्वजनिक भवनों से निकलती है
और सारे शहर में छा जाती है
जब वर्षा शुरू होती है
तब कहीं कुछ नहीं होता
सिवा वर्षा के
आदमी और पेड़
जहाँ पर खड़े थे वहीं खड़े रहते हैं
सिर्फ पृथ्वी घूम जाती है उस आशय की ओर
जिधर पानी के गिरने की क्रिया का रुख होता है।
– केदारनाथ सिंह
Jab varsha shuru hoti hai
Kabootar udna band kar dete hain
Gali kuch dur tak bhaagti huyi jaati hai
Aur phir laut aati hai
Maveshi bhul jaate hain charne ki disha
Aur sirf raksha karte hain us dhimi gungunaahat ki
Jo pattiyon se girti hai
Sip sip sip sipaj
Jab varsha shuru hoti hai
Ek bahut puraani si khaniz gandh
Saarvajanik bhavano se nikalti hai
Aur saare shahar mein chha jaati hai
Jab varsha shuru hoti hai
Tab kahin kuch nahin hota
Siva varsha ke
Aadmi aur ped
Jahan par khade the wahin khade rahte hain
Sirf prithvi ghoom jaati hai us aashay ki or
Jidhar paani ke girne ki kriya ka rukh hota hai.
– Kedarnath Singh