Kya Yaad Hai Wo Raat? Poetry Lyrics | Manjeet Singh | Heartbreak | The Social House Poetry

Kya Yaad Hai Wo Raat? Poetry Lyrics | Manjeet Singh

Kya Wo Yaad Hai Wo Raat? Poem has Written and performed by Manjeet Singh on The Social House's Plateform.

Kya Yaad Hai Wo Raat?

एक रात खुदा ने हमें रहमत में दी थी पास आने की 
हमने थोड़ी जहमत भी की थी 
बस मैं था बस तू थी
और कुछ दिन पुरानी वो आशिक़ी थी
पहली बार किसी का हाथ पकड़ना अच्छा लग रहा था
पहली बार किसी का झूठ भी मुझको सच्चा लग रहा था
यूं तो बड़ी बड़ी बातें लिख लेता था अपनी ग़ज़लों में 
पर तेरी समझदारी ऐसी की उस रात
खुद को मैं बच्चा लग रहा था
खुद से बहुत दूर जा चुका था 
तेरे थोड़ा सा पास आने के लिए
अपनी हर, चाहत को भुला चुका था तुझको पाने के लिए
जो ख्वाब देखे थे इन छोटी सी आंखों ने
उनको भी मैं मिटा चुका था, 
तेरी हकीकत में खो जाने के लिए
क्या याद है वो रात?
क्या याद है वो रात
वो ऊंची सी इमारत,
वो ऊंची सी छत
वो रौशन से तारे
वो तारों को खत
वो ख़त में मेरी चाहत
तेरे चेहरे की हसरत
तेरे चेहरे से उल्फत
वो बचकानी हरकत
वो फिजाओं का साथ
वो गहरे जज़्बात
वो हाल, वो हालात
क्या याद है वो रात?
I had blown away your dreams but then,
But then, a pattern of stars spelled up
Latters of the name in the night sky and the memories which were holding
themselves back in the darkness of some other dark, twin, parallel sky which was but devoid of your stars travelled a few light years and barged into me, gleaming, when i was dead high!
यादों
यादों का एक, जखीरा था, 
कौन सी तेरी थी मैं चुन ना सका
यादें जुल्फों सी तेरी घनेरी
कितनी तेरी थी मैं गिन ना सका
एक अरसा हो गया था तुझसे बात हुवे,
यादों के शोर में मैं तुझे सुन ना सका
टुट गया हर तारा तेरे साथ के साथ
अब तो बस ये चादर आसमान बाकी है 
छुना छोड़ दिया तुझे पर आज भी 
इन हाथों पर तेरा निशान बाकी है। 
दिल तो जुड़ गया वक़्त की गोंन्द से 
बस यादों से टुटा ये इन्सान बाकी है
मरना भी चाहता हूं पर मर नहीं सकता
के मुठ्ठी भर सीने में अभी जान बाकी है।
Do you?
Do you still tremble upon those steep
Sleep steps where we gazed at each other through the echoes from the sky emidst the light of those beautiful lucent stars infinite in number and so our promises, wrapped in the bright delusion that day were never meant to fade but may be,
But may be we never knew the star games and choose the ones which were soon to be the shooting stars and which were to impale into the atmosphere of our souls and give us some indelible, ugly and venomous scars!
कितने…
कितने फुल तेरे नाम के यादों के पन्नों में दबाए बैठा हूं
तेरा चेहरा तो मैं कब का भुल गया हो 
पर अपने ही सपनो से धोखा खाए बैठा हूं
अब तो रहमत में खुदा से तुझे मांगने की‌ आदत सी हो गई है।
नींद रात के पंक्षी से ख्वाबों में आने की इजाजत सी हो गई है
जिंदगी भी मेरी कभी जिन्दगी हुआ करती थी
अब तो बस तेरे नाम की इबादत सी हो गई है
वो क्या है ना 
एक रात खुदा ने हमें रहमत में दी थी पास आने की 
हमने थोड़ी जहमत भी की थी 
बस मैं था बस तू थी
और कुछ दिन पुरानी वो आशिक़ी थी
और कुछ दिन पुरानी वो आशिक़ी थी…!
                                       – Manjeet Singh