Wah – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

वह | केदारनाथ सिंह  ‘अकाल में सारस’ नामक कविता-संग्रह में‌‌ संकलित यह हिन्दी कविता ‘वह‘ भी सम्मिलित हैं। वह इतने दिनों के बाद वह इस समय ठीक मेरे सामने है न कुछ कहना न सुनना न पाना न खोना सिर्फ आँखों के आगे एक परिचित चेहरे का होना होना – इतना ही काफी है बस इतने … Read more

Lokkatha – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

लोककथा | केदारनाथ सिंह  इस कविता में उस लोक कथा का जिक्र है जो सदियों से लोक में प्रचलित है , लेकिन केदार जी की यह एक खास विशेषता है कि वे लोककथा कविता में लोक की विडंबनाओं को उद्घाटित करने से नहीं चुकते । इस तरह लोक और लोक संस्कृति का उद्घाटन करना कवि का … Read more

Laybhang – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

लयभंग | केदारनाथ सिंह  ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ‘ नामक कविता-संग्रह में यह कविता ‘लयभंग‘ भी संकलित हैं। लयभंग जब सुबह-सुबह सूरज जलाता है अपना स्टोव और आदमी अपनी बीड़ी तो कितना अजब है कि दोनों को यह पता नहीं होता कि असल में यह एक बेचैन-सी कोशिश है उस संवाद को फिर से शुरू करने … Read more

Raqt Me Khila Hua Kamal – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

रक्त में खिला हुआ कमल | केदारनाथ सिंह ‘अकाल में सारस’ केदारनाथ जी की प्रसिद्ध कविता-संग्रहो में से एक है जिसमें यह कविता ‘रक्त में खिला हुआ कमल‘ भी सम्मिलित हैं। रक्त में खिला हुआ कमल मेरी हड्डियाँ मेरी देह में छिपी बिजलियाँ हैं मेरी देह मेरे रक्त में खिला हुआ कमल क्या आप विश्वास करेंगे … Read more

Yah Agnikiriti Mastak – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

यह अग्निकिरीटी मस्तक | केदारनाथ सिंह  ‘यहां से देखो‘ नामक कविता-संग्रह में‌‌ यह कविता ‘यह अग्निकिरीटी मस्तक‘ भी सम्मिलित हैं।इस कविता में एक चुप्पी या सन्नाटा केदार जी को बेचैन करता है की आखिर लोग मौन क्यों हैं? जिन्हें बोलना आता है जो बोल सकते हैं, लोकतंत्र के लिए बोलना जरूरी हैं अपने अधिकारों के लिए बोलना … Read more

Matrabhasha – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

मातृभाषा | केदारनाथ सिंह ‘अकाल में सारस‘ केदारनाथ सिंह जी की प्रसिद्ध कविता-संग्रह है जिसमें यह कविता ‘मातृभाषा‘ भी संकलित हैं। मातृभाषा जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में कठफोड़वा लौटता है काठ के पास वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक लाल आसमान में डैने पसारे हुए हवाई-अड्डे की ओर ओ मेरी भाषा मैं लौटता हूँ … Read more

Meri Bhasha Ke Log – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

मेरी भाषा के लोग | केदारनाथ सिंह  इस कविता में केदार जी कहते हैं की‌ हिन्दी मेरी दुनिया है और जो हिन्दी भाषा जानता है, वो मेरा अपना है। अर्थात ् हिन्दी के लोगों के बिना और अन्य किसी भाषा की बात न करना दुसरी दुनिया में जाने जैसा है ऐसा कल्पना करना उनके लिए असम्भव काम की … Read more

Basant – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

बसंत | केदारनाथ सिंह  ‘यहाँ से देखों‘ कविता-संग्रह में यह कविता ‘बसंत‘ भी संकलित हैं। बसंत और बसंत फिर आ रहा है शाकुंतल का एक पन्ना मेरी अलमारी से निकलकर हवा में फरफरा रहा है फरफरा रहा है कि मैं उठूँ और आस-पास फैली हुई चीजों के कानों में कह दूँ ‘ना’ एक दृढ़ और छोटी-सी … Read more

Badayi Aur Chidiya – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

बढ़ई और चिड़िया | केदारनाथ सिंह  एक बढ़ई का लकड़ी चीरना उसके जीवन का  दैनिक कार्य है। इस कविता में केदारनाथ सिंह ने  ऐसा संघर्ष चित्रित किया है जिसमें भविष्य को लेकर कई आशंकाएं जन्म लेती हैं। ऐसी ही एक आशंका चिड़ियाओं के जीवन का संकट है। इस कविता में उन्होंने लकड़ी के चीरे जाने के … Read more

Phalo Me Sawad Ki Tarah – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

फलों में स्वाद की तरह | केदारनाथ सिंह  केदारनाथ सिंह की हिन्दी कविता ‘फलों में स्वाद की तरह‘ इनके प्रसिद्ध कविता-संग्रह ‘अकाल में सारस’ से ली गई है। फलों में स्वाद की तरह जैसे आकाश में तारे जल में जलकुंभी हवा में आक्सीजन पृथ्वी पर उसी तरह मैं तुम हवा मृत्यु सरसों के फूल जैसे दियासलाई में … Read more