Kuch Sootr Jo Ek Kisaan Baap Ne Bete Ko Diye – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

कुछ सूत्र जो एक किसान बाप ने बेटे को दिए | केदारनाथ सिंह ‘कुछ सूत्र जो एक किसान बाप ने बेटे को दिए‘ कविता में एक किसान अपने बेटे को कई सूत्र देता जैसे कि लाल चींटियों के दिखने पर वर्षा और आंधियों का आगमन, अंधेरे में रास्ता भुलने पर कुत्तों के भौंकने का भरोसा करना … Read more

Akaal Mein Doob – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

अकाल में दूब | केदारनाथ सिंह  ‘अकाल में दूब’ कविता में भयानक सुखे पर केंद्रित है सुखा पड़ने की गवाही दुब दे रहा है जो सुखे की वजह से उसका अस्तित्व संकट में है ‌और स्थितियां भी यही संकेत दे रही होती है और मंत्रणा करती हैं और अकाल में यदि दूब बची है तो जीवन … Read more

O Meri Udaas Prithvi – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

ओ मेरी उदास पृथ्वी | केदारनाथ सिंह  ‘अकाल में सारस‘ नामक कविता-संग्रह में‌‌ संकलित यह कविता ‘ओ मेरी उदास पृथ्वी‘ भी  है। ओ मेरी उदास पृथ्वी घोड़े को चाहिए जई फुलसुँघनी को फूल टिटिहिरी को चमकता हुआ पानी बिच्छू को विष और मुझे ? गाय को चाहिए बछड़ा बछड़े को दूध दूध को कटोरा कटोरे को … Read more

Suryasth Ke Bad Ek Andheri Basti Se Guzarte Hue – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए | केदारनाथ सिंह ‘अकाल में सारस‘ में केदारनाथ सिंह की एक हिन्दी कविता  ‘सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए’ पर केंद्रित है । गोधूलि वेला से शुरू होकर दीये की लौ के जलते – प्रकंपित होते स्वरूप को अवलोकित करती हुई कवि – दृष्टि गाँव … Read more

Daane – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

दाने | केदारनाथ सिंह  ‘अकाल में सारस‘ नामक कविता-संग्रह जिसमें ‘दाने’ कविता केदारनाथ सिंह जी द्वारा रचित एक हिन्दी कविता है। दाने नहीं हम मंडी नहीं जाएँगे खलिहान से उठते हुए कहते हैं दाने जाएँगे तो फिर लौटकर नहीं आएँगे जाते-जाते कहते जाते हैं दाने अगर लौट कर आए भी तो तुम हमें पहचान नहीं पाओगे … Read more

Disha – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

दिशा | केदारनाथ सिंह  ‘दिशा‘ कविता बाल मनोविज्ञान से संबंधित है जिसमें पतंग उड़ाते बच्चे से कवि पूछता है – हिमालय किधर है? बालक का उत्तर बाल सुलभ है कि हिमालय उधर है जिधर उसकी पतंग भागी जा रही है। हर व्यक्ति का अपना यथार्थ होता है , बच्चे यथार्थ को अपने ढंग से देखते हैं। … Read more

Dheere Dheere Hum – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

धीरे-धीरे हम | केदारनाथ सिंह ‘धीरे-धीरे हम‘ कविता ‘अकाल में सारस‘ नामक कविता-संग्रह में संकलित एक हिन्दी कविता है। धीरे-धीरे हम धीरे-धीरे पत्ती धीरे-धीरे फूल धीरे-धीरे ईश्वर धीरे-धीरे धूल धीरे-धीरे लोग धीरे-धीरे बाग धीरे-धीरे भूसी धीरे-धीरे आग धीरे-धीरे मैं धीरे-धीरे तुम धीरे-धीरे वे धीरे-धीरे हम                       … Read more

Drishayyug-2 – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

दृश्ययुग-2 | केदारनाथ सिंह  ‘दृश्ययुग-2‘ कविता केदारनाथ सिंह  जी द्वारा रचित एक हिन्दी कविता  है जो ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ’ नामक कविता-संग्रह में संकलित हैं। दृश्ययुग-2 उसे देखकर कहना भूल गया एक बात थी जो तभी भूल गई थी जब चला था घर से और फिर कई दिनों तक याद रहा वही एक भूलना जो बाद … Read more

Drishayyug-1 – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

दृश्ययुग-1 | केदारनाथ सिंह  ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ‘ नामक कविता-संग्रह केदारनाथ सिंह जी द्वारा लिखी गई है  जिसमें यह कविता ‘दृश्ययुग-1‘ भी संकलित हैं। दृश्ययुग-1 मन हुआ चुप रहूँ फिर कुछ मिनट बाद चुप्पी खलने लगी फिर किसी ने मेरे अंदर जैसे गाने की जिद की यह कोई अन्य था जिसे मैं जानता नहीं था … Read more

Jharber – Kedarnath Singh | Hindi Kavita

झरबेर | केदारनाथ सिंह कविता-संग्रह ‘यहां से देखो‘ सन् ‌‌‌‌‌1983 में प्रकाशित हुई जिसमें यह कविता ‘झरबेर‘ भी सम्मिलित हैं। इस कविता में केदार जी ट्रेन की खिड़की से झरबेर के पेड़ों को देख कर अपनी कुछ स्मृतियो को ताजा करते हैं। झरबेर प्रचंड धूप में इतने दिनों बाद (कितने दिनों बाद ?) मैंने ट्रेन की … Read more